Monday, August 19, 2013

गीत-2



गीत-2

जीवन की रगों में घुलता जहर,
सोख ले गया रस को कौन?
हरित-श्यामल-सी गोद धरा की
घुटन से हुई बैचैन,
सद्भाव-तरू की जड़ें हैं कटती,
तम में आरी चलाता कौन?
सोख
माया की यहां चमक उभर रही,
पर कोमल कोंपल झुलस रही,
सनातन शान्ति को छिन्न करने,
चुपके-से यहां आता कौन?
सेाख….
धुंआ उधर अशान्ति का उठ रहा,
इधर वैमनस्य की चिनगारी फूट रही,
लपटें आसमान छूने लगी,
दिलों में आग लगा गया कौन?
सोख
प्रिया ऊषा के स्वागत में,
गाते थे जो गीत मधुर,
सहम  किसी आशंका से
पंछी अचानक क्यों हो गये मौन?
सोख
जो मानव था उसका पुजारी
वही प्रकृति को अब रहा है छल,
अक्ष्म्य उद्दण्डता मानव की
प्रकृति देख रही खड़ी हो मौन।
सोख ले गया रस को कौन?

 -हरिचन्द

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