जीवन झील नहीं ...
Hindi Poems by Hari Chand and Ashok Kumar
Saturday, August 3, 2013
वेदना
वेदना
निविड़
अधंकार
में
मिली
मुझे
तुम
एक
मात्र
किरण
-
सी
अवलंब
पिघलकर
बह
गया
अंधकार
...
और
यों
प्रकट
हुई
मेरे
अन्तर
की
वेदना।
-हरिचन्द
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