गीत
विश्वास मानवता का प्राण
शक्ति चीरती पत्थरों
को
रचती महल
हजार-
पर विश्वास-हीन मानव
सदा,
अनागत भय का
शिकार।
कैसा यह
निर्माण ?
विश्वास---
‘‘शक्ति’ से चलते
हैं जहाज
पल में
मिटाते दूरी-
मानव फिर
भी रहे अजनबी
यह कैसी
मजबूरी?
कैसे मिले त्राण
?
विश्वास---
‘‘शक्ति’ चलाती है
राकेट,
बेधते शून्य आकाश।
मगर शून्य
हृदय मे कभी
हो न
सका प्रकाश।
हुई भावना निष्प्राण।
विश्वास---
‘‘शक्ति’ भय की
जननी है,
कैसे बने
मानव अभय
परमाणु पर टिकी
धरा है,
हर पल
संभव प्रलय।
लक्ष्यहीन सब निर्माण,
विश्वास मानवता का प्राण।
-हरिचन्द
-हरिचन्द
Beautiful Poetry.
ReplyDeleteThanks a lot Sir for appreciation!
Delete