ये झोंका हवा का
ये झोंका हवा का-
मेरे गांव से
होकर आया है
।
भुला चुका था
जिनको मै
उन यादो को
सुलगाने आया है।
रस-सिंचित मिट्टी की महक,
बरसों जो मेरे
मन में बसी
थी,
घुटते-घुटते अब तक
जो
चका-चैंध में
दब चुकी थी
,
यह जालिम आज उसे
फिर से उड़ा
ले आया है।
एक सपना था
-
टूट कर जो
बिखर चुका था,
भग्न दिल में
टीस जगाने,
उसके अवशेष उठा लाया
है ।
इस भीड़-भरे सागर-से
शहर में
लहर-संग मै
बह चला था
,
जो छूट चुका
था पीछे सब,
तूफान बनके वो आज
मुझसे आ टकराया
है...
ये झोका हवा
का...
-हरिचन्द
-हरिचन्द
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