Tuesday, August 13, 2013

ये झोंका हवा का



ये झोंका हवा का

ये झोंका हवा का-
मेरे गांव से होकर आया है
भुला चुका था जिनको मै
उन यादो को सुलगाने आया है।
रस-सिंचित  मिट्टी की महक,
बरसों जो मेरे मन में बसी थी,
घुटते-घुटते अब तक जो
चका-चैंध में दब चुकी थी ,
यह जालिम आज उसे
फिर से उड़ा ले आया है।
एक सपना था -
टूट कर जो बिखर चुका था,
भग्न दिल में टीस जगाने,
उसके अवशेष उठा लाया है
इस भीड़-भरे सागर-से शहर में
लहर-संग मै बह चला था ,
जो छूट चुका था पीछे सब,
तूफान बनके वो आज 
 मुझसे टकराया है...
ये झोका हवा का...


 -हरिचन्द

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