अनकही अभिव्यक्ति
हम बातें कर रहे
थे
जिन्दगी की,
आज और कल
की ,
इधर और उधर
की,
पूरे जहान की
बाते।
मुझे अब याद
नही है-
पर शायद उन
बातों को सुनते
भी रहे,
चाहे उन बातो
को समझे या
नहीं-
पर समझने की कोशिश
जरूर करते रहे।
लेकिन वह बात-
जिसके बाद
न बात करनी
पड़ती है,
न बात सुननी,
समझनी पड़ती है,
वह बात--
न मेरे होठों
पर आई,
न उनकी जुबान
पर।
और bसी तरह
हम
अपने बीच की
अजनबी खामोशी को
तोड़ने के लिए
जी भर कर
बातें करते रहे!
लेकिन वह बात...
-अशोक कुमार
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