Wednesday, August 7, 2013

अनकही अभिव्यक्ति



अनकही अभिव्यक्ति

हम बातें कर रहे थे
जिन्दगी की,
आज और कल की ,
इधर और उधर की,
पूरे जहान की बाते।

मुझे अब याद नही है-
पर शायद उन बातों को सुनते भी रहे,
चाहे उन बातो को समझे या नहीं-
पर समझने की कोशिश जरूर करते रहे।

लेकिन वह बात-
जिसके बाद
बात करनी पड़ती है,
बात सुननी, समझनी पड़ती है,
वह बात--
मेरे होठों पर आई,
उनकी जुबान पर।
और bसी तरह हम
अपने बीच की अजनबी खामोशी को
तोड़ने के लिए जी भर कर बातें करते रहे!
लेकिन वह बात...

-अशोक कुमार

No comments:

Post a Comment