Saturday, August 17, 2013

आत्म-प्रवंचना



आत्म-प्रवंचना

जीने की कोशिश में
और अधिक मरता जाता हॅूं मैं…
झूठी बातों/ झूठी यादों/ और झूठी
आत्म-प्रशंसा के जाल में-
फंसता ही जाता हॅूं मैं
झूठे स्नेह-सम्बन्धों पर आधारित-
एक स्वप्निल दुनिया गढ़ता ही जाता हॅूं मैं….
जानते हुए कि आत्म-प्रवंचना है ये मात्र,
फिर भी जीने की कोशिश में,
जाने क्यों--
स्वयं को छलता ही चला जाता हॅूं मैं ?



-अशोक कुमार

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