Friday, August 9, 2013

अबोध शिशु



अबोध शिशु

खेतों को जाती रमणी की
ऊॅंगली थामे एक शिशु
जा रहा किलकता-सा…
राह की मृदु घास पर
लघु पग धरता-सा…
माथे पर सरक आई उसके
बालों की उलझी लटें-
हवा में खेलती-सी…

पर आह-
राह के पत्थर से ठोकर खा-
औंधे मुह गिरता है,
होठों पे खिंच आती है
रूआंसी रेखा...
आंखे भीत हो
मां की ओर ताकती हैं...
मां की ऊॅंगली थामे
वह जा रहा शिशु किलकता-सा...

 -हरिचन्द

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