ज्वलन्त
सत्य
वर्षो पहले पढ़ी
कहानी का एक
अंश
रह-रह कर
मेरी चेतना को झकझोर
जाता है।
कहानी-
एक भिक्षु
किशोर की...
बेड़ी से बंधे
पैर.......
सड़क पार कने
की कोशिश.........
और.......
तीव्र गति से
आती एक कार
उसका सिर कुचल
जाती है।
पीछे रह जाती
है-
बेबस बाप की
एक असहाय चीख...
वर्षो पहले-
शायद यह घटना
कहानी रही हो!
लेकिन-
आज वर्षो बाद,
यह घटना
कहानी नहीं-
एक ज्वलंत सत्य है…
क्योंकि --
पल-पल मैं
एक बेबस बाप
के घर जन्म
लेता हूं
और पल-पल
बंधे पांव से
सभ्यता के विकास
पथ को
पार करने की
कोशिश में
मेरा सर कुचला
जाता है।
-हरिचन्द
-हरिचन्द
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