Saturday, August 3, 2013

ज्वलन्त सत्य



ज्वलन्त सत्य

वर्षो पहले पढ़ी कहानी का एक अंश
रह-रह कर
मेरी चेतना को झकझोर जाता है।

कहानी-
एक  भिक्षु किशोर की...
बेड़ी से बंधे पैर.......
सड़क पार कने की कोशिश.........
और.......
तीव्र गति से आती एक कार
उसका सिर कुचल जाती है।
पीछे रह जाती है-
बेबस बाप की
एक असहाय चीख...

वर्षो पहले-
शायद यह घटना कहानी रही हो!
लेकिन-
आज वर्षो बाद,
यह घटना
कहानी नहीं-
एक ज्वलंत सत्य है…
क्योंकि --
पल-पल मैं एक बेबस बाप के घर जन्म लेता हूं
और पल-पल बंधे पांव से
सभ्यता के विकास पथ को
पार करने की कोशिश में
मेरा सर कुचला जाता है।


 -हरिचन्द

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