ग्राम-बाला
श्यामल हरियाली के बीच,
मिट्टी की मेढ़
पर
पड़ते अल्हड़ कदम,
आंचल संभालती ,
परेशान-सी,
आती खेतो की
राजकुमारी…
सूरज को लजाते
गर्व से उन्नत
भाल पर
ढलते मोती-से श्रम
विन्दु…
शिरस्थ भार को
संभाले,
मंद होती किरणो
में,
गांव की ओर
बढ़ते
निर्विकार कदम …
खेतों में अकेली
देख उसे
जब पवन अठखेलियां
करती है,
अल्हड़पन से मुस्करा
देती है …
रात-दिन के
संगम पे
होठों से जब
राग निकलता है,
शान्त वातावरण भी
गूजता है उस के संग-संग…
-हरिचन्द
-हरिचन्द
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