Sunday, August 18, 2013

ग्राम-बाला



ग्राम-बाला


श्यामल हरियाली के बीच,
मिट्टी की मेढ़ पर
पड़ते अल्हड़ कदम,
आंचल संभालती ,
परेशान-सी,
आती खेतो की राजकुमारी…
सूरज को लजाते
गर्व से उन्नत भाल पर
ढलते  मोती-से श्रम विन्दु…
शिरस्थ भार को संभाले,
मंद होती किरणो में,
गांव की ओर बढ़ते
निर्विकार कदम
खेतों में अकेली देख उसे
जब पवन अठखेलियां करती है,
अल्हड़पन से मुस्करा देती है
रात-दिन के संगम पे
होठों से जब राग निकलता है,
शान्त वातावरण भी
गूजता है उस के संग-संग…

 -हरिचन्द

No comments:

Post a Comment