तुम जो
तुम जो-
शान्त-सी, सौम्य-सी, कोमल-सी ,
गरिमामयी-सी, अनछुई-सी,
देती हो एक
मौन निमत्रंण….
जानना चाहता हॅूं तुम्हें!
तुम जो-
सपनों में आती
हो,
खींचती हो अपनी
ओर,
परेशान-सा जब
आता हॅूं तुम्हारे पास,
करती हो स्वागत,
उसी शान्त, सौम्य. मुस्कान
से,
उन्हीं निरूपाय आंखों से….
आशाओं का एक
सागर जगा जाती
हो...
प्यार करना चाहता
हॅूं तुम्हें!
तुम जो-
हर किसी पर
बिखेरती हो जादू,
उसी मुस्कान से,
उन्हीं आंखों से...
आहत होता हॅूं,
नजरे चुराता हॅूं, भाग
जाता हॅूं ,
भूलना चाहता हॅूं तुम्हें!
तुम फिर भी
अनजान आकर्षण से,
बुलाती हो बार-बार,
और करती हो
स्वागत,
सताती हो, रूलाती
हो….
भूलाकर सब कुछ-
शब्दों में पिरोना
चाहता हॅूं तुम्हें!
तुम जो-
जीवन-पथ पर
चली जाती हो
दूर….
संजोकर रखता हॅूं
यादें,
शान्त, खिला हुआ
चेहरा,
चंचल बोलती-सी आंखें,
चुप-चुप रहकर
स्वागत करती-सी
आंखें…
पूजना चाहता हॅूं तुम्हें!
-अशोक कुमार
-अशोक कुमार
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