Saturday, August 17, 2013

तुम जो



तुम जो

तुम जो-
शान्त-सी, सौम्य-सी, कोमल-सी ,
गरिमामयी-सी, अनछुई-सी,
देती हो एक मौन निमत्रंण….
जानना चाहता हॅूं तुम्हें!
तुम जो-
सपनों में आती हो,
खींचती हो अपनी ओर,
परेशान-सा जब आता हॅूं तुम्हारे पास,
करती हो स्वागत,
उसी शान्त, सौम्य. मुस्कान से,
उन्हीं निरूपाय आंखों से….
आशाओं का एक सागर जगा जाती हो...
प्यार करना चाहता हॅूं तुम्हें!

तुम जो-
हर किसी पर बिखेरती हो जादू,
उसी मुस्कान से,
उन्हीं आंखों से...
आहत होता हॅूं,
नजरे चुराता हॅूं, भाग जाता हॅूं ,
भूलना चाहता हॅूं तुम्हें!

तुम फिर भी
अनजान आकर्षण से,
बुलाती हो बार-बार,
और करती हो स्वागत,
सताती हो, रूलाती हो….
भूलाकर सब कुछ-
शब्दों में पिरोना चाहता हॅूं तुम्हें!

तुम जो-
जीवन-पथ पर चली जाती हो दूर….
संजोकर रखता हॅूं यादें,
शान्त, खिला हुआ चेहरा,
चंचल बोलती-सी आंखें,
चुप-चुप रहकर स्वागत करती-सी आंखें…
पूजना चाहता हॅूं तुम्हें!

 -अशोक कुमार

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