जीवन झील नहीं ...
Hindi Poems by Hari Chand and Ashok Kumar
Friday, July 19, 2013
कुंआ
कुंआ
-1-
शायद
गांव
में
नल
आ
गए
हैं
…
कुंआ
-
तरस
जाता
है
नव
-
वधू
की
चरण
रज
को…
-2-
अपनी
सीमित
गहराई
में
असीम
आसमान
को
छिपाए,
बस्ती
से
बाहर,
निःशब्द
प्रहरी-
सा…
कुंआ
-
जब
-
तब
किसी
पंछी
की
आहट
मात्र
से
चैंक
उठता
है।
-हरिचन्द
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