Thursday, July 25, 2013

भावी कर्णधार



भावी कर्णधार

रोज सवेरे--
बगल में थैला लटकाये
जाती भीड़ बच्चों की--
धुले, अध-धुले, अनधुले चेहरे लिए,
ढंगे-बेढंगें, अधनंगे
देश के भावी कर्णधार--
पाठशाला को जाते हैं,
निकाल देती हैं मांॅएं जिनको,
सवेरे-सवेरे घर से
बासी या रूखी-सुखी देकर
साथ में खिलाकर दो-चार
झिड़कियांॅ
और हो जाती है मुक्त।

और वे निष्काम तपस्वी-से
जो भी मिलता है
उसे ही हजम कर,
चल पड़ते हैं
निज साधना-स्थल की ओर…

देश के वर्तमान कर्णधारों से
चली रही
सीढ़ी-दर-सीढ़ी उतरती
ज्यादती को
मास्टर जी के हाथों झेलते है
अपने कोमल निश्छल हाथों पर
साथ में निगलते हुए-
कुनैन सदृश शिक्षा की गोलियां
जो कूट-कूट कर भरी जाती है
खाली दिमाग में।

और शाम को
वहीं स्कूल प्रागंण में
उलीच उसे
खाली दिमाग घर लौटते हैं-
देश के-
समाज के-
भावी कर्णधार….


 -हरिचन्द

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