Thursday, July 25, 2013

चरवाहे



 चरवाहे

नहर के नीचे--
एक झुंड ढोरों का--
गायों का भैंसों का...
एक झुंड चरवाहों का...
ढोरों को समेटने को   
चरवाहे बिखर जाते हैं
दशों-दिशाओं में,
हाथ में लाठी लिए
सजग प्रहरी-से…

एक यान सभ्यता का
आकाश मार्ग से गुजरता है…
ऊपर को मुहं उठाए--
भौंचक्क ! उसे देखता --
झुण्ड चरवाहों का





एक किरण आशा की
झुण्ड-मानस में उभरती है--
गर जाये यान धरा पर
जी भरकर देखती आॅंखें उसको!

फिर भय सालता है--
खेत-मालिक के अडि़यल क्रोध का...
पल-भर को भटकी आॅंखें
कर्तव्य-वेदी पर
फिर से सजग हो जाती है।


 -हरिचन्द

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