चरवाहे
नहर के नीचे--
एक झुंड ढोरों
का--
गायों का भैंसों
का...
एक झुंड चरवाहों
का...
ढोरों
को समेटने को
चरवाहे बिखर जाते
हैं
दशों-दिशाओं में,
हाथ में लाठी
लिए
सजग प्रहरी-से…
एक यान सभ्यता
का
आकाश मार्ग से गुजरता
है…
ऊपर को मुहं
उठाए--
भौंचक्क ! उसे देखता
--
झुण्ड चरवाहों का ।
एक किरण आशा
की
झुण्ड-मानस में
उभरती है--
गर आ जाये
यान धरा पर
जी भरकर देखती
आॅंखें उसको!
फिर भय सालता
है--
खेत-मालिक के अडि़यल
क्रोध का...
पल-भर को
भटकी आॅंखें
कर्तव्य-वेदी पर
फिर से सजग
हो जाती है।
-हरिचन्द
-हरिचन्द
No comments:
Post a Comment