लीक
एक बन्धी हुई लीक
और सामन्ती/ लाटसाहबी
मान-मार्यादा के गोल-गोल दायरे-
इन्हीं पर चलते
हैं लोग…
किन्तु-
बन्धी हुई लीक
को तोड़ना-
सामन्ती मान-मर्यादाओं
के दायरे से
बाहर आना
एक इन्सान के नजरिये
से सोचना…
मैं कहता हॅूं-
पुलिस की वर्दी
में होते हुए
भी-
इन्सान बने रहना-
इतना मुश्किल तो नहीं
?
-अशोक कुमार
No comments:
Post a Comment